गुरु का शिष्य को उपदेश !!!
एक शिष्य ने परमपूज्यपाद श्री राम किंकर जी से कहा... महाराज! मुझे यह भजन करना झंझट सा लगता है, मैं छोड़ना चाहता हूँ इसे!!! उदार और सहज कृपालु महाराजश्री उस शिष्य की ओर करुनामय होकर बोले... छोड़ दो भजन! मैं तुमसे सहमत हूँ | स्वाभाविक है की झंझट न तो करना चाहिए और न ही उसमे पड़ना चाहिए |
पर मेरा एक सुझाव है जिसे ध्यान रखना की फिर जीवन में कोई और झंझट भी मत पालना क्योंकि तुम झंझट से बचने की इच्छा रखते हो | कहीं भजन छोड़ कर सारी झंझटों में पड़ गए तो जीवन में भजन छूट जायेगा और झंझट में फँस जाओगे | और यदि भजन नहीं छूटा तो झंझट भी भजन हो जाएगा | तो अधिक अच्छा यह है की इतनी झंझटें जब हैं ही तो भजन की झंझट भी होती रहे |
भाई जी
Wednesday, July 21, 2010
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